"They are not health workers, but health helpers". हाल ही में, मैं अस्पताल गया था, मेरे लौहपुरुष नाना जी का तबियत का मिज़ाज अस्थिर सा है। यहां, एक जीवन की कीमत को बहुत बारीकी से देखा जा सकता है। आजकल कई चर्चो या समाचार पत्रों से जानकारी मिलती है आत्महत्या जैसे घटनाओं के बारे में । यूं तो सिर्फ एक - दो कारण नहीं मालूम पड़ती है, जैसा मैंने समाजशास्त्र में पढ़ा था। परंतु अगर एक आत्महत्याकार अस्पतालों के जुझ रहे मरीजों को देख ले, मुझे ऐसा अनुभव प्रतीत होता है कि शायद वो अपने इस अनन्यिक कार्य करना छोड़ देंगे। मगर ये भी सिक्के के एक पहलू है, ऐसा कई बार भी देखा गया है कि लोग अस्पतालो में भी आत्महत्या की घटना हो जाती है। हालांकि मैं इसमें कुछ स्थिर थ्योरी बनाने में असफल रहा हूं। बहरहाल, अस्पताल एक ऐसी संस्था है, जहां राजा-रंक, हिंदू-मुस्लिम, लड़का-लड़की, गोरा-काला आदि जैसे कई विभाजन जो समाज में बहुचर्चित रहते है, यहां देखने को नहीं मिलता है। इससे मेरे दिल को सुकून मिलती है। आमतौर पर ये देखने, बोलने या सुनने को मिलता है कि समाज में हमेशा पुरुष अपने परिवार का खयाल रखते है और महिला अप...